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गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

टुटा भरम!!!( एक पुरानी कविता)

तेरा आना
निष्प्राण में
नए जीवन का
संचरण था
बुझते दीपक में
 नई उर्जा का
अवतरण था
जंग लगी
स्वझरणी जागी
कहने लगी
मुखर होकर
प्रखर होकर
अपने पन का
पारदर्शी अहसास
परिष्कृत कर गया
जनमी गर्भ से
कालजयी कृतियाँ
तुम्हारी
प्रेरणा की अदृश्य तरंगों ने
झखझोर दी चेतना
सामीप्य ने भरे 
आकाश में वासंती रंग
रात रानी महकी
नागीन मस्ती में झूमी
 सहसा
छलकते नैनों
टुटा भरम
देकर
लेने वाले
तुम निकले


आपका
शिल्पकार

Comments :

13 टिप्पणियाँ to “टुटा भरम!!!( एक पुरानी कविता)”
Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…
on 

अतिसुंदर कोमल भाव.

Udan Tashtari ने कहा…
on 

बहुत सुन्दर...ललित भाई!!

Khushdeep Sehgal ने कहा…
on 

चोट गहरी खाई हुई है कहीं गुरु...

ये भ्रम यूहीं नहीं टूटा करते...

जय हिंद...

Kulwant Happy ने कहा…
on 

अद्भुत!

Kusum Thakur ने कहा…
on 

बहुत गहरी भावाभिव्यक्ति . बधाई !!

Kusum Thakur ने कहा…
on 

बहुत गहरी भावाभिव्यक्ति . बधाई !!

Unknown ने कहा…
on 

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ललित जी!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…
on 

बहुत सुन्दर...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

बहुत खूबसूरत.

रामराम.

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…
on 

साहब !
यह तो जो महसूस वही जाने .. सुन्दर ,,,

vandana gupta ने कहा…
on 

bahut hi gahan.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

वाह ! आपकी कविताओं में अब नुखार अ रहा है ललित जी !

राज भाटिय़ा ने कहा…
on 

अति सुंदर
धन्यवाद

 

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