कवि प्रकाशवीर "व्याकुल" जी अपनी व्याकुलताओं का कारण बताते हुए क्या कहते हैं, ये मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.
दुर्भाग्य देश का उस दिन था बैठी जहाँ सभा सारी.
बैठे थे अंधे धृतराष्ट्र बैठे थे भीष्म ब्रम्हचारी
बैठे द्रोणाचार्य गुरु बैठे कौरव नर-नारी
और सिंहासन पर बैठा था वो दुर्योधन अत्याचारी
बैठे थे कृष्ण भगवान वहीं प्रस्ताव संधि का सुना दिया
मांगे थे केवल पॉँच गांव पांडव को इतना दबा दिया
हर तरह नीच को समझाया परिणाम युद्ध का जता दिया
उसने सुई की नोक बराबर भी भूमि को मना किया
इन इतिहास के पन्नों की मैं जब-जब खोज लगाता हूँ
मैं तब व्याकुल हो जाता हूँ.
एक ओर महात्मा राम दूसरी ओर भरत पंडित ज्ञानी
उनके चरण में बनी हुयी थी गेंद राष्ट्र की राजधानी
बिछड़ तात गए वन को भरत बिगड़ गई बात जब जानी
हो गया अधीर नयनों से नीर बहता कहता था ये वाणी
जब तक मिलें नहीं राम नहीं आराम मुझे मै जाऊं वन को
सारे कष्ट हो जाएँ नष्ट जब पाउँगा जीवन धन को
चरणों में भ्रात के लिपट गया अर्पित करके निज जीवन को
ले चरण पादुका फिर और नहीं छुआ तलक सिंहासन को
वो प्यार भ्रात का कहाँ गया जब यह जानना चाहता हूँ
मै तब व्याकुल हो जाता हूँ.
प्रस्तुतकर्ता
शिल्पकार
सच! आपका व्याकुल होना जायज है!!
बहुत ही सुंदर ओर सच आप की व्याकुलता सही है.
इस सुंदर रचना के लिये धन्यवाद
बहुत सच है.
रामराम.
bilkul sahi kaha.
मन को छू गये भाव।
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मानवता के नाम सलीम खान का पत्र।
इतनी आसान पहेली है, इसे तो आप बूझ ही लेंगे।
सबका यही हाल है। वैसे मैंने सुना आपकी असम एफएम पर धमाल है।
Kitni saralta se kitnee badi baat kah di gayi hai rachna me....
Don hi ghatnakram me sambandh ek hi se the..par paristhitiyan kitni bhinn thi...
Ek taraf do bhai jo rajy ko bhatriprem ke sammukh trinvat samajhte the...aur doosri taraf bhaai bhaai ka sabse bada shatru...
बहुत आनन्द आया कि वुआकुल हुआ जा रहा हूँ.
@रंजना जी, आपने दो युगों के परिवर्तनों को सही पहचाना, मै भी इसके माध्यम से यही बताना चाहता था। शुक्रिया