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गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

आज चांदनी बलखाई-बौराई थी तरुणाई

सरसों  ने  ली अंगडाई गेंहूँ की बाली डोली
सरजू ने ऑंखें खोली महुए ने खुशबु घोली


अमिया पर यौवन छाया जुवार भी गदराया
सदा सुहागन के संग गेंदा भी इतराया
जब रजनी ने फैलाई झोली 
गेंहूँ की बाली डोली


रात-रानी के संग गुलमोहर भी ललियाया
देख महुए की तरुणाई पलास भी हरषाया
जब कोयल ने तान खोली
गेंहूँ की बाली डोली


बूढे पीपल को भी अपना आया याद जमाना
ले सारंगी उसने भी छेडा मधुर तराना
जब खूब जमी थी टोली
गेंहूँ की बाली डोली


गज़ब कहर बरपा था महुए के मद का भाई
आज चांदनी बलखाई बौराई थी तरुणाई
खुशियों की भर गई झोली
गेंहूँ की बाली डोली


आपका 
शिल्पकार

Comments :

4 टिप्पणियाँ to “आज चांदनी बलखाई-बौराई थी तरुणाई”
Udan Tashtari ने कहा…
on 

गजब भाई..बहुत उम्दा!!

Kusum Thakur ने कहा…
on 

बहुत ही अच्छी रचना है , आभार !!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

बूढे पीपल को भी अपना आया याद जमाना

ले सारंगी उसने भी छेडा मधुर तराना

जब खूब जमी थी टोली

गेंहूँ की बाली डोली


Ati Sundar !!

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

बहुत खूबसूरत रचना बधाई

 

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