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इंडी ब्लागर

 

उगे बीज को मरते देखा, जैसे कोई गर्भपात हो गया।

एक बीज से  आस  जगी  थी, मृगतृष्णा  सी  प्यास  जगी  थी,
सारा  चौपाल   सूना-सूना  था,  जैसे  गांव  में  आग  लगी  थी,
चारों तरफ़ सन्नाटा-ही सन्नाटा,जैसे कोई सन्निपात हो गया,
उगे  बीज  को  मरते  देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया

तेरे इस  विशाल  नीले  आँचल  में,  पंख  फैलाये   उड़ता  था  मै,
प्रगति  के  नए   सोपानों   में,  नित्य   सितारे   जड़ता   था   मै,
मुझसे  क्या  अपराध  हो  गया,  मुझ  पर  क्यों  आघात हो गया,
उगे  बीज  को  मरते  देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,

पहले भी मै तडफा-तरसा था, तू  कभी  न समय  पर  बरसा था,
लिए  हाथ  में  धान  कटोरा, मै  फ़िर  भी  बहुत - बहुत  हर्षा  था,
नई  सुबह  की  आशा  में   था,   सहसा   ही   वज्रपात   हो   गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,

गीली मेड की  इस  फिसलन  पर,  मै  बहुत  दूर  जा  फिसला हूं,
तेरे  कृपा  की   आस   लिए   मै,  नित   तुझको   ही   भजता   हूँ,
डोला  गगन  आ  गया  विप्लव, जैसे  कोई  उल्का  पात  हो गया,
उगे  बीज  को  मरते  देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,

असमय  बरसा  तो  क्यों  बरसा, चारों  तरफ  हा-हा  कार हो गया,
जिस  पर  अभी  यौवन  आना  था, वो  जीवन  से  बेजार  हो  गया,
तेरी    इस    असमय    वर्षा   पर,   रोऊँ   या   मै   जान   लुटा   दूँ,
लूटा-पिटा   बैठा   हूँ   अब   मै ,  जैसे   कोई   पक्षाघात   हो   गया,
उगे  बीज  को  मरते  देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया।

आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)

Comments :

15 टिप्पणियाँ to “उगे बीज को मरते देखा, जैसे कोई गर्भपात हो गया।”
राजीव तनेजा ने कहा…
on 

बेबस कृषकों की व्यथा को दर्शाती एक बहुत ही उम्दा किस्म की रचना...बधाई स्वीकारें

Udan Tashtari ने कहा…
on 

एक बहुत गहन एवं उम्दा रचना. जबरदस्त!!!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

धन्यावाद राजीव जी,आपका स्वागत है,

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

धन्यवाद समीर भाई आपका स्वागत है,

खोटा सिक्का ने कहा…
on 

भारत के किसान की दशा का आपने तो चित्र ही खीच दिया,ललित भाई बधाइ हो

मास्टर जी ने कहा…
on 

bahut badhiya kavita kishanon ki vartama dasha ka sahi chintan

टिपौती लाल "झारखण्डी" ने कहा…
on 

बहुत बढिया ललित भैया,उम्दा काव्य,

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

धन्यवाद, देव जी आपको मेरी शुभकामनाए

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

आज कि्सानो के साथ सभी दशा खराब हो गयी है महगाई के कारण,आपको शुभकामनाए

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

धन्यवाद मास्टर जी,

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

किसान की मजबूरी को दर्शाती सुन्दर रचना शुभकामनायें

Anil Pusadkar ने कहा…
on 

चलो किसी को याद आई किसानों की।और ये बेईमान मौसम इससे ज्यादा कमीना तो मैने आज तक़ देखा ही नही जब चाहिये तब बरसेगा नही और जब नही चाहिये तो कहर बरसा देगा।बहुत बढिया लिखा ललित बाबू।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

धन्यवाद अनील भैया,आपका स्नेह बना रहे,

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

धन्यवाद,निर्मला जी स्नेह बनाये रखे,

शरद कोकास ने कहा…
on 

1 > चित्र अपने आप मे सभी कुछ कहता है ।
2> कविता अपने विस्तार मे इस आपदा को नये अर्थ देती है ।
3>"आज कि्सानो के साथ सभी दशा खराब हो गयी है महगाई के कारण,आपको शुभकामनाए" -अब शुभकामनाये ही कुछ कर सके तो ठीक हो ।

 

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